शांत सलिल अबंर असीम
कहॉ पर किसकी सीमा
कौन किसे कहॉ छू रहा
न बादल जाने न लहरें
पंछी ने पंख फैलाये
जरूरी नहीं असीम को छूना
मन है उसका तो बस उडने का
घूंट घूंट नीलिमा पी कर झूमने का
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